Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 81
________________ (GO) श्रावके पाणीनो कलश पकमीने उना रहे. 'एक श्रावकें पुष्पनी बाबमी पकमीने उजा रहे. एक श्रावकें धूपधाणुं लेवू. एक श्रावके यत्नपूर्वक दीपक धारी राखवो. एक श्रावके चामर ग्रहण करवं. एक श्रावके घंट लेवो. एक श्रावके आरिसो ग्रहण करवो. एक श्रावकें थाली ग्रहण करवी. एक श्रावकें अक्षतफल आदिक ग्रहण करवू तथा एक शिखाबध उत्तम श्रावके शुद्धमंत्रपाठ उच्चारण करवो. एवी रीतें बारे श्रावको, तथा बीजा पण स्नात्रिआयओए, ते ते वस्तुओ बेश्ने, स्नात्रघरने पागले जागे आवी, स्नात्रपीथी जंचे स्थानके अगासे पेहेलां पूर्वसन्मुख उना रहेq. पछी पाठ उच्चारण करनार श्रावके बखिनो खोबो जरीने उदात्त स्वरथी नीचे प्रमाणे इंदिग्पालतुं आह्वाहन कर. ॐ नम इंघाय, पूर्व दिगधिष्टायकाय, ऐरावणवाहनाय, सहस्रनेत्राय, बज्रायुधाय, सपरिजनाय अमुकगृहे वृक्षस्नात्रमहोत्सवे आगठ, आगर, ब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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