Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(६९) दित्यपूजन प्रमाणेज जाणवो. पनी पुष्पादिकनी अंजलि जरीने त्रणवार अर्घ्य देश्ने, अंजलि जोमी नीचे प्रमाणे तेनी प्रार्थना करवी. सदा वह्निदिशो नेता, पावको मेषवाहनः॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयच्छतु ॥ १॥
एवी रीतें अग्निदिग्पालनां पूजननो विधि जाणवो, हवे दक्षिणाधिपनी पूजानो विधि कहे . पुष्पांजलि जरीने, 'ॐ हूँ हुँ हा क्षः यमाय संबौषट्' एवी रीतनो मंत्र नणीने, तेनां ममलने वधाव. पड़ी चुवामां कस्तुरी मेलवीने तेनुं मंमल थालेखवू. पली 'ॐ नमो यमाय, दक्षिण दिगधिष्टायकाय, महीषवाहनाय, दंमायुधाय, कृष्णमूर्तये, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्रं करीने उपरप्रमाणेज तेनां आह्वाहन आदिकनो विधि करवो. चंदनपूजामां कंकुनी पूजा, पुष्प पूजामां दमणानी, फळपूजामां काळी सोपारीनी; वस्त्रपूजामां काळां वस्त्रनी, तथा नैवेद्यपूजामां अमदना लाडुनी पूजा करवी. बाकीनो सघळो विधि आदित्यपूजन प्रमाणे
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