Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 76
________________ (७५) सिते वृषेऽधिरूढश्च, इशान्यां च दिशि विजुः॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयच्छतु ॥१॥ एवी रीतें इशानदिग्पालनो पूजाविधि जाणवो. हवे ऊर्वलोकाधिपति एवाब्रह्मपूजननो विधिकहेले पुष्पादिकनी अंजलि नरीने, “ॐ हूँ। हूँ ब्लू चंड ब्रह्मसंबोषट् ' एवी रीतनो मंत्र जणीने, ब्रह्ममंमलने वधाव. पठी सुखम केसर अने कपूरने मिश्रित करीने ब्रह्ममंगलने वालेखवू. पड़ी 'ॐ नमो ब्रह्मणे ऊर्वलोकाधिष्ठाय राजहंसवाहनाय, सा-- युधाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्रना पाठपूर्वक तेना आह्वाहन थादिकनो विधि करवो. पछी चंदनपूजामा एकला सुखमनी, पुष्पपूजामां सेवंत्रांनां पुष्पोनी, फलपूजामां बीजोरांनी, वस्त्रपूजामां सफेद वस्त्रनी; तथा नैवेद्यपूजामा घेवरनी पूजा करवी. बाकी सघली विधि आदित्यपूजन माफकज जाणवी. पठी पुष्पादिकनी अंजलिपूर्वक तेने त्रणवार मंत्रथी अर्घ्य दीधा बाद नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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