Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 74
________________ (१३) पादिकनी अंजलिथी त्रणवार मंत्रपूर्वक श्रय दे श्ने, नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. हरिणो वाहनं यस्य, वायव्याधिपतिर्मरुत् ।। संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयन्तु ॥१॥ एवी रीते वायुपूजननो विधि जाणवो. हवे कुबेरपूजननो विधि कहे . पुष्पादिकनी अंजलि जरीने, 'ॐ लो हो कु बेरसंबौषट्' एवी रीतनो मंत्र जणीने, कुबेरनां मंमलने वधाव. पडी सुखम अने बरासने नेलवीने तेनं मंगल आलेखवं. पली 'ॐ नमो धनदाय, उत्तरदिगधिष्टायकाय, गदाहस्ताय, नरवादनाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्रं करीने पूर्वनी पेठे तेना आह्वाहन थादिकनो विधि करवो. चंदनपूजामां सुखम अने बरासना मिश्रणनी, पुष्प पू. जामां जाइ अथवा सेवंत्रांनां पुष्पोनी, फलपूजामा बीजोरानी, वस्त्रपूजामां सफेद वस्त्रनी तथा नैवेद्यपूजामा पेंमा अथवा घेसीया दखनी पूजा करवी. बाकीनो सघळो पूजाविधि आदित्यपूजन प्रमाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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