Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(६०) मां मोतीचुरनां सामुथी पूजन करवं. बाकीनो स. घळो विधि आदित्यपूजननी पेठेज जाणी लेवो. प. डी पुष्प आदिकथी तेनां मंत्रपूर्वक त्रणवार अंजलि देइने नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. ऐरावणसमारूढः, शक्रः पूर्वदिशः पतिः ॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रपतु ॥१॥ एवी रीतें इंदिग्पालनी पूजानो विधि जाणवो.
हवे अग्निदिग्पालनी पूजानो विधि कहे . । हाथमां पुष्पादिकनी अंजलि जरीने, 'ॐ ह्री ₹ रो रो अग्निसंबोषट् एवी रीतमो मंत्र जणीने अग्निमंमलने वधावतुं, पड़ी लाल चंदनथी तेनुं मंगल आलेख. पली 'ॐ नमो अग्निमूर्तये, शक्तिहस्ताय, मेषवाहनाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे वृद्धस्नात्रमहोत्सवे आगढ आगड स्वाहा' एवी रीतना मंत्रथी पूर्वनी पेठेज आह्वान आदिक विधि करवो. चंदनपूजामा एकलु केसर, पुष्पपूजामां जासुदनां पुष्पो, फलपूजामा लालसोपारी, वस्त्रपूजामां लाल रंगनुं वस्त्र, तथा नैवेद्य पूजामां चुरमानो लामु चमाववो. बाकीनो सपळो विघि था.
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