Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 71
________________ (30) जाणवो. पड़ी पुष्पादिकथी त्रणवार मंत्र जणी अय॑ दीधाबाद नीचे प्रमाणे तेनी प्रार्थना करवी. दक्षिणस्यां दिशि स्वामी, यमो महिषवाहनः॥ संघस्य शांतये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रयच्छतु ॥१॥ एवी रीते यमपूजननो विधि जाणवो. हवे नैश्तपूजननो विधि कहेले. पुष्पादिकथी अंजलि नरीने, 'ॐ ग्लौ हों नैशतसंबौषट्' एवी रीतनो मंत्र जणीने, तेना मंगलने वधाव. पली एकली कस्तूरीथी नैकतनुं मंगल आलेखवं, पली 'ॐ नमो नैकताय, खड्गहस्ताय, सीववाहनाय, सपरिजनाय, अमुकगृहे' इत्यादि मंत्र जणीने तेनां आह्वान आदिकनो विधि करवो. चंदन पूजामां चुयो अने सुखम नेगुं करी, तेनुं पूजन क. रवं. पुष्पपूजामां बोलसरीनां पुष्पोनी, फलपूजामां दामिम तथा सीताफलनी, वस्त्रपूजामा उदारंगनां वस्त्रनी, तथा नैवेद्यपूजामां तलवटनी पूजा करवी; बाकीनो सघलो विधि आदित्यपूजनना जेवोज जा. एवो. पठी पुष्पादिकथी त्रणवार मंत्र जणी, अर्ध्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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