Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(६५) टः टःटः बत्ररूपाय राहुतनवे केतवे नमःखाहा' ए. वी रीतनो मंत्र नणीने केतुनां मंगलने वधाव. पछी यक्षकर्दमथी केतुनुं मंगल आलेख. पली आगळनीज पेठे 'ॐ नमः केतवे' इत्यादिक पाठ पूर्वक तेना आह्वान आदिकनी क्रिया करवी. पड़ी कंकुपूजामां चंदननी, पुष्पपूजामां पचरंगी पुष्पोनी, वस्त्रपूजामां श्याम रंगनां कापडनी, फलपूजामा दामीमनी, तथा नैवेद्यपूजामां मगनी दाळना लामुनी पूजा करवी. बाकीनो बीजो सघळो विधि आदित्यपूजन प्रमाणेज जाणवो. वळी गोमेदकनी अथवा अकलबेरनी तेनां मंत्रपूर्वक नोकरवाळी गणवी. पनी पुष्प आदिकथी त्रसवार अर्घ्य देइने, तेनी नीचे प्रमाणे स्तुति करवी. राहोः सप्तमराशिस्थः, कारणे दृश्यतेम्बरे ॥ श्रीमलीपार्श्वयोर्नाम्ना, केतो शांतिश्रियं कुरु ॥ एवी रीते केतुपूजननो विधि जाणवो. ॥ एवी रीते नवे ग्रहोना पूजननो विधि संपूर्ण थयो. पड़ी उन्ना थश्ने, पचरंगी पुष्प, अक्षत, श्रीफल,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/4fd417fa3dfaaadba742577a6d2a43c32efca2c724d930faf19194af9b598634.jpg)
Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106