Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१०) पाणीथी नरवो. पड़ी ते लीलां अथवा पीळां वस्त्रथी ढांकवो. तथा तेने पुष्पोनी माला पहेराववी. मुखपर श्रीफल मुकवू. पछी 'ॐ ह्री ः ः वः स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने, तथा श्वासने स्थिर राखीने, ते कुंचने स्वस्तिक पर स्थापवो. पडी ज्यां बिंब होय, त्यां बन्ने जगोए कुंजस्थापन करवं; तथा ते कुंजस्थापननी जगोए एक हाथनी दीवट करीने, चोवीश पहोरसुधि अखंग दीवो राखवो. त्रणे काल त्यां धूप करवो, वळी त्यां बिलामी प्रमुख हिंसक प्राणीने आववा देवू नहीं; तथा रजस्खला प्रमुख मलीन स्त्रीनी त्यां दृष्टि पमवा देवी नहीं. पली ते कुंज आगळे त्रण टंक हमेशां सुहागण स्त्री पासे गहुली कढाववी. तथा बन्ने वखत हमेशां सु. हागण स्त्रीपासे धवलमंगल गवरावां. गानारी स्त्रीउने तांबोल आदिकनी परजावना देवी. त्यां श्रावक तथा श्राविकाए नरकादिकनां दुःख गर्जित, तथा मुनिउँनां उपसर्गगर्जित, आलोयणानां स्तवन आदिक गावां, पण राजिमतीना विलाप आदिकना,
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