Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 19
________________ उ अनेक धवलमंगल गाते बते, तथा अगामी थनेक जातनुं नाटक होते बते, तथा अनेक शणगारेखा हाथी घोमा विगेरे चालते ते, तथा सेंकको गमे सांबेला चालते ते, तथा याचक लोकोने दान देते बते, तथा अपवाद अने अपशब्द तजते बते, तथा एवीरीतें जैनशासननी उन्नति करते बते, ज्यां स्थापनाबिंब होय त्यां ववं. ते वखते ते घरनो धणी सुहागण स्त्रीपासे श्रीफल अख्याएं विगेरे धरावे, तथा सोना रुपानां फुल अने अदतथी ते स्त्री वधावे, तथा जिनबिंबने रुपानाणांथी बुंडणुं करीने ते याचकोने आपे, पडी संघसहित घरमां थावे; तथा घरना घारपर कंकुना हाथा (थापा) आपे, तथा नवीन बिंब आगळ पांचशेर चोखानो साथीयो करे, उपर सोपारी तथा चोखंगो रुपीयो मूके; पली सकल संघ त्रण खमासणां देने प्रजुने वांदे. पड़ी त्यां स्नात्र नणावी देववंदन करे. पड़ी ते घरनो स्वामी तथा प्रतिमा सेवा आवनार श्रावक था. पसबापसमा पहेरामणी करे तथा केसरनां गंटणां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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