Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ (२२) बाजोउ, (लीला रेशमथी ढांकेलो), सरीया, इ. मिपमी, करवमों, धुसरं, त्राक; कंकुनी वाटकी, मू. सळ, रवाश्यो, पुष्प, पत्र विगेरेश्री प्रजु, पोखj करे. ते वखते घरधणी देवव्यनी वृद्धि करे. पडी ते प्रतिमाने पगेथी संपुट चांपीने घरमांहें लावे. त्यां जो मुहर्त्तने वखत होय तो खीली विनाना बाजोपर पधरावे. पनी मुहर्तवखते प्रतिमाजीने रंगमंम्पमाले उनो रहे. पठी त्यां जे जगोए प्रतिमाजी पधराववां होय, त्यां चंदनना बांटा नांखीने, कुंजारना चकनी माटी, वृषजना शींगमांनी माटी, हाथीना दांतनी माटी, रुपानो काचबो, मूलसहित मान, धोला सरसव, पुर्वा, जव, श्रीखंम, तथा तंमुल मुकवां. वळी तेनी वच्चे चोखंमो रुपीयो एक मुकवो. पड़ी तेपर सोनानो पाटलो मुकवो. पनी सुखम, केसर, कस्तू. री, बरास, अंबर, अगर, मारिच, कंकोल, तथा सो. नारुपाना वर्गने मेळवी, घसीने एक सोनां अथवा रुपानां कचोलामा उतारवी. अने तेथी ते पाटला. पर दक्षिणावर्त उत्तम आकारनो स्वतिक करवो. प. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106