Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( २३ ) बी ते स्वतिकनी चारे पांखमी पर एक श्वासे नीचे प्रमाणे कूर्ममंत जणवो. “ ॐ कूर्म निजपृष्ठे जिनबिंबं धारय धारय स्वाहा " पढी गुरुए नीचे प्रमाणे मंत्रथी दिग्बंधन कर. "ॐ ह्री वी सर्वोपद्रवाबिंबं रक्ष रक्ष स्वाहा” एवी रीतना मंत्री दि. बंधन कर. पी केसर, कपूर तथा वासक्षेप करीने शुभ मुहूर्ते स्वरोदय साधीने “ॐ ह्री जी राजलापार्श्वनाथाय नमः " एवी रीतनो मंत्र सातवार कहीने तथा सात नोकार जीने, “ ॐ हूँ। जिराजला पार्श्वनाथाय रक्षां कुरु कुरु स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र प्रजुनी पीठे जींतपर लखवो. पनी धूपसहित “ ॐ पुष्यादं पुष्यादं प्रीयंतां प्रीयंतां" एवी रीतनो उच्चार कर्याबाद “ ॐ कूर्म निजपृष्ठे जिनबिंबं धारय धारय स्वाहा " एवी रीतनो मंत्र जणीने, तथा श्वासने कुंजक करीने, श्री जिनबिंबनुं स्थापन करवुं. तथा त्यां माभ, हलदर, वरियाली, वालो, मोथ, पीपरामूळ, लविंग, मरिच, कंकोल, जायफल, जायंत्री, नखला, सुखमनो जुको, विगेरे पण स्थापवा.
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