Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 57
________________ (५६) पम (विध्यंतरे रातुं अथवा सफेद कपडं) श्वेत रं. गनां पान, अखंग सफेद सोपारी, तथा त्रांबा अने रूपानाणांथी पूजन करवं. पछी पूर्वप्रमाणे अर्घ्य देश्ने, तथा उपर श्रीफल मूकीने पूजन करवू. त. था पछी ते पाटलो प्रनुनी माबी बाजुए मुकवो. हवे ते ग्रहपूजननो विधि विस्तारथी कहेले. तेमां प्रथम नीचे प्रमाणे आदित्यनी पूजा करवी. __ 'ॐ ही शशांकसूर्याय सहस्रकिरणाय नमोनमः स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने लाल चंदनथी आदित्यममलनु आलेखन करवू. पछी, 'ॐ आदित्याय सवाहनाय, सपरिकराय; सायुधाय, अमुकगृहे वृक्षस्नात्रोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणोने, तेनुं बाह्वाहन करवं, पबी, 'ॐ आदित्याय सवाहनाय इत्यादि उपर प्रमाणे पाठ कहीने, अत्र तिष्ट तिष्ट स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने स्थापना मुसाथी तेनुं स्था पन करवू. पठी उपर प्रमाणे मंत्र जणीने, गंधादिकं समर्पयामि स्वाहा, एम कहीने धूप करवो, पछी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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