Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 63
________________ ( ६२ ) पूजननो विधि कहे. पुष्प यादिकनी अंजलि जरीने, 'ॐ यः अमृताय, अमृतवर्षाय, दैत्यगुरवे नमः' एवी रीतनो मंत्र जणीने, शुक्रना मंगलने वधाववुं, पत्नी सुखमथी शुक्रनुं मंगल यालेख तथा पढी 'ॐ नमः शुक्राय, इत्यादिक मंत्रोएं करीने तेनां श्रह्वाहन यदिकनो विधि करवो. पढी चंदननी पूजामां सुखमनी पूजा करवी, पुष्पपूजामां जाइ ने मोगरानी, वस्त्रपूजामां सफेद सुतराज कापरुनी, फलपूजामां बीजोरांनी, तथा नैवेद्यपूजामां घेसीया दलनी अथवा मरमरानां लाकुनी पूजा करवी. तथा बाकीनी साली विधियादित्यपूजन प्रमाणे करवी. स्फटिक अथवा रूपानी तेनां मंत्रपूर्वक नोकरवाली गणवी, पढी पुष्प यादिकथी त्रणवार अर्ध्य दीधाबाद नीचे प्रमाणे तेनी स्तुति करवी. ॐ पुष्पदंत जिनेंद्रस्य, नाम्ना दैत्यगणार्चितः ॥ प्रसन्नो जव शांतिं च, रक्षां कुरु जयश्रियं ॥ १ ॥ एवी रीतें शूक्रपूजननो विधि जाणवो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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