Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ (३६) अस्पबतरमबिंबहि, तिवबमणीरयणकणयकविसिसा रयण अजुलरूवमया, वेमाणीयजोनवणवया ॥४॥ वहंमितिसंगुल, तितिसधाणु पिहुलपणसयधणुच्चा॥ उधणुमय नकोसं, ईतरायरयणमय चउदारा॥५॥ चबरंसे ईगधणुलय, पिहुवखासदकोसअंतरया ॥ पढमबियाबियंतश्या, कोसंतरंपुवमीवसेसं ॥६॥ सोवाणलहसदलकर, पिहुंचगंतु जुवो पढमवप्पो ॥ तो पनावणुंपयरो, तबसोवाणपणसहस्सा ॥७॥ तो बियवप्पो पन्नध, पयरसोवाणसहसपणतत्तो ॥ तश्वप्पोत्यसय, धणुंगकोसेहिंतोपिढं ॥॥ चउदारंति सोवाणं, मज्के मणीपीढयंजिणतणुच्चं ॥ दोध[सयपिहुदिहुं, सट्टदुकोसेहिंरचणीअप्पं ॥ए॥ जिणतणुखारगुणुच्चो, समहिजोअण पिहुंअसोकतरं तय होय देवं वंदे, चउसीहासण सपयपीढा ॥१०॥ तवरि चढउत्ततया, पमिरुवतिगंतहठचमरधरा ॥ पुरऊकणयकुसेसय, वियफाखिअधम्मचक्कचन॥१९॥ फयचयरमंगल, पंचालियदामवेश्यकलसे ॥ पडिदारंमणीतोरण, तिमधुवधमी कुणंतिवणा॥१२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106