Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 50
________________ ( ए) शाकिनीभूतवेताला, राक्षसाः प्रनवंति न ॥३॥ नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पण दश्यते ॥ अग्निचौरजयं नास्ति, ही घंटाकर्णो नमोस्तु ते।। उः वः स्वाहा” एवी रीते घंटाकर्ण मंत्र जणवो. हवे मुहूर्तने दिवसे स्नात्र करावनारे, इन्द्रियोनी खोम विनाना, तथा मांज विनाना, स्पष्ट बोलनारा, अखंम शिखावाळा एकसोने आठ, अने जघन्यथी चार स्नात्रियायोने एकठा करवा. ते स्नात्रियाओए 'ॐ ही अमृते, अमृतोनवे,अ. मृतवर्षिणि अमृतं श्रावय श्रावय स्वाहा' एवी री. तनो मंत्र सात वखत कहीने, जलशुद्धि करवी. पली ॐ ह्री यदाधिपतये नमः' एवी रीतनो मंत्र सात वखत कहीने दातण करवू. पठी हाथमां पाणीनी अंजलि चरीने, 'ॐ ह्री श्री क्ली कामदेवाधिपतिर्मम अजीप्सितं पूरय पूरय स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सा. तवार जणीने, ते पाणीथी मुखशुद्धि करवी. पठी पूर्व सन्मुख बेसीने, सुगंधि तेल आदिकधी मर्दन करवं. पनी 'ॐ ही अमले विमले विमलोनवे सर्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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