Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 53
________________ (५५) दृष्टिसंपर्कात् तत्संयुतं प्रदीपः पातु सदा शाबदुःखेन्यः स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र ऋण वार जणीने ते दीपको प्रकटवा. पनी ते दीपकोमांदेथी एक सधवा स्त्रीपासे जिननी जमणी बाजुए, तथा बीजो माबी बाजुए मूकाववो. पठी तेपर केसरनां बांटा नांखवा. ते कोमीयांथोने स्थिर करवामाटे दीवीनां चामांसाथे गेवासूत्रथी बांधवां. पनी वृक्ष श्रावके स्नात्रियायोने हाथे कंकण बांधवां. बे श्रावकोना हाथमा देवद्रव्य वधरावीने घीनी वाढीयो आपवी; तथा तेश्रोने दी. पकोपासे उना राखवा, अने तेयोने हाथे तेमां घी पुरावता रहे. एवी रीते जे जे उपकरणो श्रावकोने आपवां, ते ते देवप्रव्य वधरावीने आपवां. पली वृद्ध श्रावके प्रजुनी पेठे पाटलापर बेसबुं. तथा माटलीने धेश धुंपीने, बीजा श्रावकोपासे फलाबी राखी, तेमां केसरनो साथी करवो, तथा तेपर ॐ ह्रीश्री सर्वोपड़वान् नाशय नाशय स्वाहा" एवी रीतनो मंत्र लखवो; पड़ी रुपाना तथा पंचर• ननी पोटलीने, “ॐ हँ। बाहास्वाहा,सुगंधिपुष्पाधि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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