Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ५० ) तीर्थजलोपमे पां पां वां वां अशुचिः शुचिर्जवामि स्वादा' एवी रीतनो मंत्र त्रणवार जणीने सर्व अंगे स्पर्श करी स्नान करवुं पढी 'ॐ ह्री खाँ काँ नमः' एवी रीतनो मंत्र त्रणवार जणीने शुद्ध वस्त्रो पहेरवां. पठी तेर्जए बीजा त्रण श्रावको पासे केसर घसावीने, तेनी त्रण वाटको जराववी, तेमांथी एक देवपूजामाटे बीजी तिलक यादिक करवामाटे तथा त्रीजी ग्रह आदिक खालेखवामाटे राखवी. पढी बीजा बे पासे श्रावको पींजेला शुद्ध रुनी बसोने चौद वाटो कराववी, तथा बे मोटी गेवासूलनी वाटो एवी रीतें बसोने सोल वाटो कराववी. (वली विध्यंतरे एकसोने आठ वाटो पण कहेली बे.) पढी चार मुख्य श्राकोए तथा बीजा स्नात्रियाउए तिलकनुं केसर हा थमां लइने 'ॐ ॐ ह्री क्ली अर्हते नमः ' एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने तिलक कर पढी एक वृद्ध स्नात्रियाए गेवासूत्रनो दो हाथमां लइने, 'ॐ ही तर अवतर सोमें सोमें कुरु कुरु वग्गु वग्गु निवग्गु वीसुम सोमणसें महुमहुरे ॐ कक
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