Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 54
________________ (५३) वासितं नीरं, पतताविचित्रवर्णनमंत्राढयं स्थापनाबिंबे स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने माटलीनी अंदर मुकवी. पड़ी ते माटलीने एक पवित्र इंडोणी. पर "ॐ ही ठः ठः ठः स्वाहा” एवीरीतनो मंत्र सातवार जणीने, स्थापना मुद्राएं करीने प्रतिमानां जमणा पासामां मुकवी, पठी पंचामृत एकठां करीने, जिनबिंबोपरि निपतत्, घृतदधि पुग्धादिनिः परिपूतं ॥ गंधोदकसंमिश्रं, पंचशुष्ट्या हंतु दुरितानि ॥१॥ एवी रीतनो श्लोक त्रण वार नणीने, ते माटलीमा मुकवा. (विध्यंतरे त्रांबाकुंमीमां पण मु. कवान कयु) पली, "ॐ ह्रीनः जलधि नदी ह. दकुंडेषु यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि, तैर्मत्रसंस्कृतैरहद्विबं स्नापयामि शुद्ध्यर्थ स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र सात वार जणीने, वृक्ष श्रावके पोते अथवा सधवा स्त्री पासे, ते माटलीमां एकसाने आठ न. वाण- पाणी रेमावq. पडी मूलवाळो मान, तथा मींढोल अने मरमासींघीने गेवासुत्रथी, मंत्रथी पवित्र करीने, ते माटलीने कंठे बांधवू. पड़ी ते पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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