Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 48
________________ (४७) वळी जो डोबंध जगोपर तथा मालपर स्नान कराव, होय, तो भूमिने सधवा स्त्री पासे लाल अथवा धोली गायना बाणथी लीपावी शुद्ध करवी. प. बी एक नाना संपुटमां सोपारी, चोखा, त्रांबानाएं, रुपाना', तथा पंचरत्ननी पोटली नाखोने, ते संपु. टने ते वेदिकापर मुकवं. अने ते वखते "ॐ कूर्म निजपृष्टे जिनबिंबं धारय धारय स्वाहा” एवीरीतनो मंत्र एकसोने आठवार, अथवा सत्तावीसवार जणवो. पड़ी ते संपुटपर माटी नाखीने वेदिकाने सरखी करवी; के जेथी ते देखाय नहीं. पली ते वेदिकाउपर चोखानो चोक पुरावीने घडली करवी. तेनापर कंकुथी पूजीने एक श्रीफल मुकवू. पठी तेपर सुखम, केशर अने कंकु, एम त्रण रेखाथी चोखंडं मंगल करवं. पठी “ॐभूरसिजूतधात्री विश्वाधारे नमः” एवी रीतनो मंत्र सातवार नणीने, वास तथा पुष्पथी ते वेदिकानुं पूजन करवं. ते वेदिकापर प्रथमथीज चंदरवो बांधवो. तथा बे ध्वजार्ड चमाववी. पडी मु. हूर्त्तनां दिवससुधि त्रण टंक धूपदीप सहित त्यां सात Jain Educationa International www.jainelibrary.org For Personal and Private Use Only

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