Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 47
________________ ( ४६ ) लापशी, पोळी, पुरुला, चोला, जारनो खीचको विगेरे सर्व मली ऋण शेर करवो. तथा ते स्नात्रने अंते दि. पालोने विसर्जन करती वखते उमाडवु. एवी रीते अष्टोत्तरी स्नानां उपकरणोनो विधि जावो. हवे उपरनi उपकरणो शिवाय बाकी रहेलां ग्र. हदिक्पालनी पूजाना उपकरणो कहे बे. सुखम, केशर, अगर, बरास, कस्तुरी, मरिच कंकोल, गोरुचंदन, हींगळो, रक्तचंदन, तथा सुवर्णरज, एटलानो यक्षकर्दम करीने, तेर्जना पाटलापर लेपन करवुं. हवे invस्थापननो विधि कहे बे. स्नात्रकारकें मुहूर्तना दिवसथी, सात, पाच, त्रण, अथवा एक दिवस पेहेलां जमीनथी एक गज - ने नव तंसु उंची, बे गज अने ग्यार तसु पोहोबी, तथा बे गज ने सत्तर तसु लांबी स्नात्र क " रवानी जगोए एक वेदिका कराववी, तथा अंदर शुद्ध माटी पुरवी, मंरुपनी बहार चारे दिशाए ज घन्यथी सात हाथ प्रमाणनी जमीन शुद्ध कराववी. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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