Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 38
________________ (३७) जोयणसहसदमा, चेश्यधम्मामाणगयसीहा ॥ ककुजाइजुआसवं, माणामिणं नियमिअरेण ॥१३॥ पविसीअपुवाइ, पटुपयाहिणं पुव्व बासणनिविद्धो पयपीमववि आपा, पणमिअतित्थो कह धम्म मुणी विमाणीणीसमणी, समवण जोश्वणदेवदेवतिथं कप्पसुरनरिस्थितिअं, विंतिग्गियाइविदिसासु ॥१५॥ चलदेविसमणीउ-दविया निविद्यानरि बिसुरसमणा। श्यपणसगपरिसुणंति, देसणं पढमवप्पंतो ॥१६॥ श्व श्रावस्सयवित्ति, वन्तचुणिपपुणमुणीनिविज्ञा॥ विमाणोणिसमणीदो, उद्धासेसाउछियानव ॥१७॥ विश्रतोतिरीइशाणो, देवचंदो अजाणतश्यतो ॥ तहचरंसे उवावि, कोणव हि एकेका ॥ १० ॥ पिअसिअरत्तसामा, सुरबणजोश नवणारटामवखे॥ प्रणुदंम्सासगयहत्थ, सोमयमवरुणधपदवजरका १५ जयविजया जिअ अपरा-जयति सीअथरुणपीयनीला बाए देवी जुयला, अजंगकुसपासमग्गकरा ॥२०॥ बाइबहिसुरातुंबरू, खटुंगकर लिजममउमधारी॥ प्रवरदार पासातुं-बरुदेवो अगमिहारो ॥ २१ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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