Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३०) सामन्नसमोसरणे, एसविहीजस्म हिदिसुरो॥ सम्मिणं एगोबिहु, सकुणजयणेयरसुरेसु ॥१५॥ पुघनजायं जत्थर्ड, जत्थई सुरोमहाट्टिमघवा ॥ तथा सरणं नियमा, सययपुणपारिहेराहिं ॥३॥ दुस्थि असमन्तअस्थिय,जणपस्थिअत्थसत्थसुमत्थो॥ इत्थं थुठलहुजणं, तित्थयरो कुणउ सपयत्थ ॥२४॥ ___एवी रीतनुं समवरण स्तवन, शांतिकरं तथा मोटी शांतिनो पाठ कही हाथमा रहेली वस्तुउँने उडा. लीने तेनो वरसाद वरसाववो, एवीरीते त्रणवारमा सर्व वस्तुऊनी वृष्टि करी लेवी.तथा पठी हाथ जो. मीने नीचे प्रमाणे स्तुति करवी. या पाति शासनं जैनं, संघप्रत्यूहनाशिनी ॥ सानिप्रेतार्थदा नित्यं, भूयाछासनदेवता॥१॥ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनं ॥ पूजार्चा नैव जानामि, त्वं गतिः परमेश्वरी ॥२॥
आशाहीनं कियाहीनं, मंत्रहीनं च यत्कृतम् ॥ तत्सर्व दमयामि त्वं, दमख परमेश्वरी ॥३॥
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