Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
( २८ ) होनुं मंगल आलेखवुं. तेपर लाल रंगनुं वस्त्र ढांकवुं. वली ते एकेक मंगल पर ऋणी शुद्ध एकेकुं पान मुकवुं, तेपर चोखानी ढगली करवी, तेपर राता रंगनी सोपारी मुकवी, तेपर त्रांबानाएं मुकबुं, एवी रीते ते नवे खंमपर चमाववां, पछी धूप करवो, पबी श्रीफल, मोदक तथा खाजलुं विगेरे नैवेद्य मुकवां, पढी पुष्प, वास चोखा अने पाणी हाथमां लेइने, 'ॐ श्रादित्य, सोम, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनैश्वर राहु केतवो जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठतु स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र त्रणवार जणीने ते पुष्प विगेरे चमावां पढी ते पाटलो जमणी बाजुए स्थापवो, पछी एक बीजा शिवननां पाटलापर यक्षकर्दमथी दिग्पालोने आलेखवा, तथा तेपर पीळा रंगनुं वस्त्र ढांक. पबी ते दशे मंगलोपर पान, चोखानी ढगखी, सफेद सोपारी, तथा त्रांबानाएं मुकवु, पछी धूप करवो, पढी फुल, वास, चोखा, पाणी विगेरे हाथमां लेइने, 'ॐ इंद्राग्नियम नैरुत वरुणसमीरण कुबेरेशानब्रह्मनागा जिनपतिपुरतोऽव
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/6a9f74af2f00a9ccb4ac02f948433f0d4242716fd40567a01c6b46a1ce090703.jpg)
Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106