Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ ( ३० ) रीतनो मंत्र जणीने कुंकुमना छांटा माखवा. पठी विंब स्थापन करनार गृहस्थे एक मोकरवाली 'संतिकरं 'नी गणवी. जो ते वखते वक्त न मले तो संध्याकाले गणे, अथवा वेली गणी लीए, तोपण चाले. पबी जलजात्रा महोत्सवथी जे पाणी शुभ दिवसे लाच्या होय. तेमां पंचामृत तथा गंगाजल मेलवीने स्नात्र करे. तथा आरती ने मंगलदीवो पण विधिपूर्वक करे. पछी पांच जातनी सुखमी, लापसी, सोपारी नंग एकसोने आठ; श्रीफल नंग नव, तथा उत्तम जातिनां फल नंग चोवीस एवी रीते नैवेद्य धर. पी श्री सिद्धचक्रजीनी पूजा करवी. पढी श्री गुरुनी नव अंगे पूजा करवी. पढी यथाशक्ति श्रीसंघने परभावना पेहेरामणी विगेरे करतुं ने जो ते शक्ति न होय तो खात्री वार्डनेज परामणी करे. पी गुरु उदान्त (उंचा) अने मोटा शब्दयी - जितशांति स्तवन जणे; पछी बीजा श्रावक श्राविकास्नान करी पवित्र थने, प्रभुने पूजे, तथा यथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106