Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ ( ए) तिछंतु स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र त्रण वार जणीने ते चमाववां, पढी ते पाटलो डाबी बाजुए स्थापवो. ते बन्ने पाटलानां मध्यनागमा रहीने, हाथ जोमीने, 'ॐ जो इंसादयो दिग्पाला श्रादित्यादयो प्रहाश्व खखदिशि स्थिता विघ्नप्रशांतिकरा जवंतु स्वाहा' एवी रीतनो प्रार्थना मंत्र जणवो. एवी रीते दिपालनी स्थापना कर्याबाद प्रजुने पधरावे, पठी वाकुला उठाळे. (वळी कोइक आचार्यना मत. प्रमाणे बाकुला उडाळीने प्रजुने पधराववायूँ कहे. झुंडे) पडी बाउ मुहुपत्ति लेईने देव वांदे, पली थाचार्य उपाध्याय अथवा गीतार्थ, गुरुए दीधेली वर्धमान विद्याथी सघळी करणी करीने; मस्तकपर वासदेप करे, तथा विधिपूर्वक प्रवृत्ति पाठ जणे, अने जो तेनो योग म मळे, तो कोई उत्तम ब्रह्मचारी श्रा. वक त्रण नोकार गणी वासदेप करे, पली पांच शेर सुखमी श्रागळ मुफवी. पली गुरु उभा थईने शां. तिकर तथा मोटी शांति कहे, पली 'बिंब स्थापमकीय गृहाधिपतये सौख्यं कुरु कुरु खाहा' एवी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106