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(२६) मंतु, संति, तुष्टि पुति सिव सुत्थयणकारिणो जवंतु स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र जणीने ते बलिदानने मं. त्रित करवू. पड़ी ते बाकुलाना बे नाग करीने ए. कांत पवित्र स्थानके मुकवां; पठी तेमांथी एक नाग लईने चैत्यना आगळना जागमा जर्बु, तथा जिनपीथी उंचे स्थानके उजवू. ते वखते मांजवाळा, तथा इंद्रिहीन विनानां सर्वसंपूर्ण अंगवाळा खंमि. तअंगवगरना बार स्नात्रिया पुरुषोने साथे लेवा, तेमांथी जेनां मस्तकपर चोटलो होय, तेए ते चोटखो उखेमीने खुखो मुकवो. पठी ते बलिबाकु. सानो एक खोबो गरीने पूर्व सन्मुख उजवं. एक जणे हाथमां केसरनी कचोळी लव उना रहेवू, एके पुष्प चंगेरी लेई जना रहेg, एके थाळी देश उजा रदेवू, एके धूप लेइ जना रहे, एके दीपक लेश उना रहे, एके चामर बेश् उना रहे, एके घंट से उना रहे, एके पाणी लेव उना रहेवू, तथा एके परिवारसहित पूर्व सन्मुख उना रहे, पछी जेणे बक्षिबाकुलान। पसली नरेली होय, तेवा श्रा
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