Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ छंटकाव देतो जाबो. वचे वचे जिनबिंबपरथी बुडणां करीने पैसा जैनयाचकोने देवा. ___ एवी रीतें मोटा महोत्सवपूर्वक ज्यारे पोताना घरनी नजदीक आवे, त्यारे पूर्ण जरेला कलशवाली बे अथवा चार सुहागण स्त्री, अथवा कुंवारी कन्यायो सामें आवे. वली को उत्तम पुरुष आगलथी आवीने घरना हारपर कंकुना बांटा नाखे, तथा तोरण बांधे. पली घरनो धणी श्रीफल तथा थालमां अख्याएं जरीने सामो आवी प्रतिमासन्मुख उन्ने; तथा ते धरीने प्रतिमाने नमस्कार करे; तथा 'अविधि था. शातना थइ होय ते मिठामि मुक्कम' एवो पाउनणे. वली त्यां बाकी रहेला बलिबाकुला उगले. पली घरधणी जरा सन्मुख आवी 'स्वामि पधारो' एम बोले. ___पनी ज्यारे प्रतिमा घरनां तोरण नजदीक आवे; त्यारे सधवा स्त्री; धुंदमी ओढीने हर्षनरी पोखj करे, ते पोखणांनो सामान नीचे मुजब बनतांसुधी रुपानो होवो जोश्ए. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106