Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 10
________________ त्यारे शुज दिवस जोश्ने तथा कुंनस्थापना चक्र जोश्ने, जे जगोए बिंब स्थापवानुं होय, त्यां जमणी दिशाए, ब्रह्मचारी अथवा ब्राह्मणपासे चार कोरां सरावलामांहीं जवारा ववरावा. वळी त्यां सधवा स्त्रीपासे सवाशेर चोखानो स्वस्तिक कराववो तथा ते स्वस्तिकना चारे खुणापर जवारानां पात्र मुकाववां, पली काळा माघ विनानो लालरंगनो कुंन लश् तेने कंठे गेवासूत्र बांधवं. तथा त्यां मरमाशींगी अने मी. ढोल पण बांधवां. पनी ते कुंनमां चंदननो साथीग करवो. पड़ी तेनी चारे बाजुए “ॐ ह्री श्री सर्वोपअवं नाशय नाशय स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र आलेखवो. तथा त्यां एक रुपानो सिको मुकवो. तथा माणेक, मोती, प्रवालुं, त्रांचं अने सोनुं एवी रीते पंचरत्ननी पोटली एक मुकवी. पनी उत्तम एवी स. धवा स्त्रीपासे ते कुंनथी बमणा एवा वासणमा पवित्र पाणी मगावq; पठी एक श्रावके कुंजना मुखपर कलश लश्ने रहे. पनी ते उपर पाणी नांखq. तथा ते अखंग धारथी रेमवं. एवी रीते ते कुंजने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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