Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 16
________________ ( १५) रेक पात्र क्रिया करनारे हाथमां लश्ने, “ॐ जुवणवइवाणव्यंतर, जोश्सवासी विमाणवासी य । जे के पुट्ट देवा, ते सवे उवसमंतु मम स्वाहा” ॥१॥ ॐ संतिसंतिकरं, संतिणं सवनया। संति थुणामि जिणं, संति विएन मे रासानंदियं स्वाहा ॥२॥ ॐ रोगजलजलण विसहर, चोरारिमरंदगयरणनयाइं। पास जिण नामसंकि-तणेणं पसमंति सवाई॥३॥ एवी रीतनी गाथा कहीने, घरमां तथा देहेरा आगळ आकाशे ते चारे पात्रो मूकवां, पढी त्यां धूप करीने नीचे उतरवू. पनी ज्यां स्थापनीय बिंब होय त्यां रात्रिजागरण करवू. वळी तेज रात्रिए एक पोहोर गया पठी, शुद्ध अदरथी उवसग्गहरंनी एक नोकरवाली देवगृहना मध्यनागमा उनी धूपपूर्वक गणवी. पडी मध्य रात्रिवखते धूमरहित अंगारानुं पात्र जरी बागासे मुकवू तथा तेमां एक घमीसुधि चाले एटलो दशांगधूप नाखवो. “ तथा सर्व देवदेवता मने अनुकूल थाजो.” एम कहीने घरमांथी श्राव. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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