Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१३) पूजा करवी, तथा एवी रीतें दश दिवसो सुधि शुरू स्नात्र करवु. वळी ते दशे दिवसोमां को साथे क्रोध करवो नहीं, क्लेश करवो नहीं, अपशब्दो बोलवा नहीं, तथा घेर आवेल याचक निकुक विगेरेने निराश करवा नहीं; तेने यथाशक्ति दान देश्ने खुशी करवा, एम करतां मुहूर्तने ज्यारे त्रण दिवसो बाकी रहे, त्यारे विशेष प्रकारे धूप करवो, रात्रि जागरण करवू तथा ऋण दिवसो बाकी रहे त्यारे रात्रिए एक पोहोर पड़ी देहेरांना रंगमंझपमा नैवेद्य मुकQ. तेम प्रजुने बेसाड्या पली पण एवीज रीतें त्रण दिवसो सुधि करवं. हवे ते नैवेद्यनो विधि कहे बे. लापशी, पुमला, जात, दही, खीर, खांम, वमां, कंकु, हलदर, तोकापरिसोल, पाननी बीमी, सोपारी तथा कणकनी दीवमी नंग सोल चोरस, तेमां वाट नंग चोसठ मुकदी. वळी चोळानां, मगनां तथा चणाना बाकुला मुकवा. एवी रीतें पेहेलानां तथा पलीना त्रण दिवसोसुधि रंगमंम्पमा मुक. दरेक दिवसें नैवेद्यनां वासणो नवां अने कोरां भाटीनां मुकवा. ए
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