Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ अने अनित्य तथा अशरण जावनानांगीतोगावां नही. ___ हवे जे घरे ते स्थापनबिंब होय, त्यां दश दिवसो सुधि विधिपूर्वक स्नात्र कर. ___ स्नात्रिया पुरुषोए “ ॐ ही अमृते अमृतोऽनवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय स्रावय स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सात वखत जणीने जलशुद्धि करवी. पली 'ॐ ही यदाधिपतये नमः' एवी रीतनो मंत्र सातवखत नणीने दातण करवं. पली 'ॐ ह्री श्री क्ली कामदेवाधिपतिर्ममानीप्सितं पूरय पूरय स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सात वखत जणीने मुख प्रदालन करवू. पली 'ॐ ही अमले विमलोनवे सर्व तीर्थजलोपमे पापां वां वां अशुचिः शुचिर्नवामि स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने, हाथेथी सर्व अंगने स्पर्श करीने, स्नात्र करवं. पली ॐ ह्री ॐ को नमः' एवी रीतना मंत्रथी सातवार वस्त्र मंत्रीने पहेर, पनी 'ॐ नमो आँ ही क्ली अर्हते नमः एवी रीतनो मंत्र सातवार नणीने तिलक करवू.पी. 'ॐ है। अवतर अवतर सोमे सोमे कुरु कुरु वद्यु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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