Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 13
________________ ( १२ ) तीवल्गु सुमणे सोमणसें महुमहुरे ॐ कवलीकं दः स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र सातवार जणीने, गेवासूत्र तथा मिंढोल आदिक मंत्रीने पोताने हाथे तथा स्नात्रीने हाथे बांधे; तथा रुद्धिवृद्धि प्रमुख कुंजने एकसो ने वार मंत्रीने बांध. पठी 'ॐ ॥ " भूर्भुवे स्वाध्याय स्वाहा' एवी रीतनो मंत्र जणीने वास, पुष्पादिकथी भूमिशोधन करवुं पढीक्षीरोदधि स्वयंभूश्च, सरे पद्ममहा सीतासीतोदकाकुंडे, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥ २ ॥ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ॥ कावेरि नर्मदे सिंधो, जलेऽस्मिन् संन्निधिं कुरु ॥ २ ॥ तथा "अमृते" इत्यादि सातवार जणेला मंत्रयी स्नपनीय जलनी शुद्धि करवी. अर्थात् तेवी रीतना मंत्रथी कळशने धोइ, धूपीने तेमां जळ जरवुं. पबी, "ॐ हूँ। श्री परम परमात्मने, अनंतानंतज्ञानसक्ताय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते जिनेंद्राय, जलं चंदनं, पुष्पं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, दीपं, धूपं यजामहे स्वादा" एवी रीतनो मंत्र जणीने अष्टप्रकारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only PRODE www.jainelibrary.org

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