Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 8
________________ संघत्रये गुरुगुणौघनिधौ सुवैयावृत्त्यादिकृत्यकरगैकनिबद्धकदाः ॥ ते शांतये सह जवंतु सुराः सुरीनिः । सदृष्टयो निखिल विघ्नविघातददाः ॥७॥ पठी जलदेवयाए करेमि काउस्सग्गं, तथा नमोऽहतनो पाठ जणीने नीचे प्रमाणे थोइ कहेवी. मकरासनसमासीना,कुलिशांकुशचक्रपासपाणिसया॥ आसामासापाला, विकिरतु दुरितानि वरुणो वः॥॥ पली नोकार कहीने, नमुत्थुणं तथा जयवीयराय कहेवा. पठी मोटी शांत कहेतां थकां अखंम धाराथी कुंज नरीने उपमाववा. हवे जिनचैत्यमां विंबना प्रवेशनो विधि कहे . निमित्तियापासे (ज्योतिषीपासे) अदत श्रीफल आदिक मुकीने शुज दिवस जोवरावत्रो. पड़ी ते शुजदिवसनी पेहेलाना दश, सात, पांच अथवा त्रण दिवप्त पहेला घेर तथा बहार जघन्यथी एकसो हाथ सुधिनी जमीन शुद्ध करवी; अर्थात् त्यां पडेलां कलेवर आदिक अशुचि पदार्थोंने दूर करवा. पनी जे स्थानकेंथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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