Book Title: Jal Yatradi Vidhi Author(s): Ratnashekharsuri Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 6
________________ इने, तथा उना थने, 'जगत्गुरु' कहीने ते पाटला उपरे मुका. पडी ते पाटलो प्रतुनी सामे जमणी बाजुए मुकवो. पबी एवीज रीते दिग्पालोनो पाटलो पंण पूजवो. अने ते पाटलो पण ग्रहोनां पाटलानी जोडे मूकवो. पळी अष्ट मंगलनी पूजा करवी, पड़ी नीचे प्रमाणे आठ थोश्थी देववंदन कर. प्रथम इरियावही पमीकमवा, पनी चैत्यवंदन करी नमुत्थुणं कहे. पली शांतिनाथ आराधनार्थ करेमि काउस्सग्गंनो पाठ कहीने, तथा नोकार ग. णीने नीचे प्रमाणे थोर कहेवी. श्रीशांतिः श्रुतशांतिः प्रशांतिकः स्यादशांतमुपशांतिः॥ जयंतु सदा यस्य पदाः सुशांतिदाःसंतु शांतजने॥१॥ पनी द्वादशांग्याराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, एवी रीतनो, तथा नमोऽईत्नो पाठ कहीने, नीचे प्रमाणे थोई कहेवी. सकलार्थ सिकिसाधन,बाजोपांगा सदा स्फुरदुपांगा॥ जवतादनुपहतमहा, तमोपहा हादशांगी वः ॥ पली शांतिदेवयाए करेमि कावस्प्लग्गं तथा नमो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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