Book Title: Jal Yatradi Vidhi
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 5
________________ (४) मुडा देखामवी. पडी "ॐ अमृते, अमृतोनवे, अवृतवर्षिणि, अमृतं स्रावय लावय, सें से क्ती ही ब्छु हुँ डाँडाही ही प्रावय प्रावय, छी जलदेवी देवान् अत्रागच आगन्छ स्वाहा” एवी रीतनो मंत्र त्रणवार जणीने उपर कहेली नणे मुसा देखामवी. पड़ी,हीरोदधिवयंभूश्च, सरे पद्ममहाउहे॥ सीता सीतोदका कुंडे, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥१॥ गंगे च यमुने चैव, गोदावरि सरस्वति ॥ कावेरि नर्मदे सिंधो, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥२॥ एवी रीतना श्लोको लणीने, ते कुवामांयी पाणी कहामीने कुंन जरवा. पड़ी ते कुंनो उपमावती द. खते, “ॐ ही षन, अजित, महावीर तीर्थकर परमदेवास्तस्याधिष्टायका देवाः शांति, तुष्टि, पुष्टि, रुद्धि, वृद्धि जयमंगलं कुरु कुरु पां पां वां व नमः खाहा" एवी रीतनो मंत्र जणवो. पड़ी ते कुंजो उ. पमावीने आवq. पठी ग्रहोनी फल नैवद्य विगेरे श्री अष्ट प्रकारे पूजा करवी. पडी पसलीमां पान, सोपारी, चोखा, पईसो, रुपानाएं, तथा नालीयेर ल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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