________________ 12 जैनयोग : चित्त-समाधि हमें जैन-आगमों एवं प्रागमोत्तर-साहित्य में प्रचुर मात्रा में प्राप्त है। इन पद्धतियों में बाह्याभ्यन्तर तपों का विशेष रूप से निरूपण है, जिसके कारण तत्कालीन जैनेतर मानस में एक सुदृढ़ अभिमत उत्पन्न हुआ प्रतीत होता है कि जैन-साधना मुख्य रूप से कायनिग्रह को ही सम्पूर्ण महत्त्व प्रदान करती है / 27 किसी सीमा तक यह धारणा अवश्य सत्य थी, परन्तु वस्तुस्थिति सर्वथा ऐसी नहीं है, जैसा कि प्राचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से स्पष्ट प्रतीत होता है। प्राचार्य कुन्दकुन्द ने अपने प्रवचनसार28 में दिगम्बरचर्या के कठोरतम नियमों का विधान करते हुए भी नियमसार में योग का जो स्वरूप बतलाया है, उससे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि आत्मदर्शन ही श्रमणाचार का एक मात्र ध्येय है। इस प्रसंग में नियमसार की निम्न गाथा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है-- विवरीयाभिनिवेसं परिचत्ता जोण्ह-कहियतच्चेसु। जो जुंजदि अप्पाणं णियभावो सो हवे जोगो // 29 सभी प्रकार के विपरीत अभिनिवेशों को त्यागकर जिनेन्द्रदेव कथित तत्त्वों से स्वयं को भावित करते हुए निज स्वभाव में स्थित होना ही योग है। इस प्रसंग में आचार्य कुन्दकुन्द प्रतिपादित ध्यान का लक्षण भी ध्यातव्य है / जो खविदमोहकलुसो विसयविरत्तो मणो-णिरुभित्ता / समवढिदो सहावे सो अप्पाणं हवदि झादा // 30 ___ जो पुरुष मोह रूपी मैल को क्षय करता हुआ (पर-द्रव्य रूप इष्ट-अनिष्ट इन्द्रियों के) विषयों से विरक्त होकर (चंचल) चित्त को बाह्य विषयों से रोककर अपने (अनन्त सहज चैतन्य) स्वरूप में एकाग्र-निश्चल भाव से ठहरता है, वह पुरुष आत्मा का ध्यान करने वाला होता है। III पूज्यपाद-साहित्य में योग प्राचार्य पूज्यपाद विरचित समाधितंत्र के निम्नलिखित श्लोक योग के स्वरूप पर एक नया प्रकाश डालते हैं एवं त्यक्त्वा बहिर्वाचं त्यजेदन्तरशेषतः / एष योगः समासेन प्रदीपः परमात्मनः॥ यन्मया दृश्यते रूपं तन्न जानाति सर्वथा। जानन्न दृश्यते रूपं ततः केन ब्रवीम्यहम् // 1 मैं जिस रूप को देखता हूं, वह सर्व प्रकार से अज्ञ है; जो ज्ञाता है वह अदृश्य है; अतः मैं किससे बोलू / इस प्रकार बाह्य वचन-वृत्ति को त्यागकर अन्तर्वृत्ति का भी सम्पूर्ण रूप से त्याग करें। यह संक्षेप में परमात्मा को प्रकाशित करने वाला योग है। इस योग-साधना में वाग्गुप्ति (मौन-साधना) को विशेष महत्त्व दिया गया है, जिसकी तुलना हम उत्तराध्ययन के 26 वें अध्ययन के वाग्गुप्ति एवं वाक्समाधारणता से