Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________ ध्यानतपोनिरूपणम् जह चिरसंचिर्यामधणमणलो पवणुग्गदो धुवं बहह / तह कम्भिधणममियं खणेण झाणाणलो वहइ // जह रोगासयसमणं विसोसणविरेयणोसहविहीहि / तह कम्मासयसमणं ज्झाणाणसणाविजोगेहि // __ [ध्या० श० 101, 100] संपहि सुक्कज्झाणस्स लिंगपरूवणा कीरदे-असंमोहविवेगविसग्गादको सुक्कज्झाण-लिंगाणि / एत्थ गाहाओ अभयासंमोहविवेगविसग्गा तस्स होंति लिगाई। लिगिज्जइ जेहि मुणी सुक्कज्झाणोवगयचित्तो / चालिज्जइ वीहेइ व धीरो ण परिस्सहोवसग्गेहि / सुहुमेसु ण सम्मुज्झइ भावेसु ण देवमायासु // देहविचित्तं पेच्छइ अप्पाणं तह य सम्वसंजोए / बेहोवहिवोसग्गं हिस्संगो सव्ववो कुवि / / ण कसायसमुत्थेहि वि बाहिज्जइ माणसेहि सुक्खेहि / ईसाविसायसोगाविएहि झाणोवगयचित्तो // सीयायवादिएहि मि सारीरेहि बहुप्पयारेहिं / णो बाहिज्जइ साहू ज्झयम्मि सुणिच्चलो संतो॥ [ध्या० श० 60-92, 103,104] एवं विदियसुक्कझाणपरूवणा गदा / संपहि तदियसुक्कज्झाणपरूवणं कस्सामो। तं जहा-क्रिया नाम योगः / प्रतिपतितुं शीलं यस्य तत्प्रतिपाति / तत्प्रतिपक्षः अप्रतिपाति / सूक्ष्म क्रिया योगो यस्मिन् तत्सूक्ष्मक्रियम् / सूक्ष्मक्रियं च तदप्रतिपाति च सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति ध्यानम् / केवलज्ञानेनापसारितश्रुतज्ञानत्वात् तदवितर्कम् / अर्थांतरसंक्रांत्यभावात्तदवीचारं व्यज्जनयोगसंक्रांत्यभावाद्वा / कथं तत्संक्रांत्यभाव: ? तदवष्टंभबलेन विना अक्रमेण त्रिकालगोचराशेषावगतेः / एत्थ गाहाओ अविवक्कमवीचारं सुहुमकिरियबंधणं तषियसुक्कं / सुहुमम्मि कायजोगे मणिवं तं सव्वभावगयं // सुहमम्मि कायजोगे वट्टतो केवली तदियसुक्कं / ज्झायदि णिभिजो सुहुमं तं कायजोगं पि // [भ० 0 1980-1] एदस्स भावत्थो-उप्पण्णकेवलणाणदंसणेहि सव्वदव्वपज्जाए तिकालविसए जाणतो पस्संतो करणक्कमवहाणवज्जियअणंतविरियो असंखेज्जगुणाए सेडीए कम्मणिज्जरं कुणमाणो करेदि / तत्थ जं पढमसमए देसूणचोद्दसरज्जुउस्सेहं सगविक्खंभपमाणवट्टपरिवेदमप्पाणं

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170