Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 167
________________ ADDENDA AND CORRIGENDA Page Line 75 ADDENDA Add [Cf. भगवती आराधना, 1704] [भगवती आराधना, 2151[ [भगवती आराधना, 1870] [मूलाचार, 5. 202; भगवती आराधना, 1706] [मूलाचार, 5. 203; भगवती आराधना, 1707] [मूलाचार, 5. 204; भगवती आराधना, 1708] 77 78 76 CORRIGENDA Page Line 여 의의 Incorrect प्रक्रमिति पञ्जयाणं पञ्जाए ज्ञाणं व्युत्सर्ग चतुविशति तत्पचात् विछाओं Correct प्रक्रम इति पज्जयाणं पज्जाए झाणं व्युत्सर्ग चतुर्विंशति तत्पश्चात् विधाओं च्छद्धा अगास (यह अशुद्धि कई स्थानों पर है) ज्छद्धा आगास (देखिये समाधिशतक) (पूज्यपाद) वीर सेवा मंदिर दिल्ली से प्रकाशित / अपर नाम समाधिशतक। पुरत्थिमाओ किरियावाई कम्मभवस्मिं पुरात्थिमाओ किरयावाई कम्मभविस्मिं 326

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