Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 166
________________ ध्यानमाहात्म्यं लेश्याविशुद्धिप्रकरणं च 'एवं सुभाविदप्पा' एवं सुष्ठु भावितात्मा ध्यानमुपगतः प्रशस्तलेश्यापरिणत आराधनापताकां हरत्यविध्नेन // 1618 // तेलोक्कसव्वसारं चउगइसंसारदुक्खणासयरं / आराहणं पवण्णो सो भयवं मुक्खपडिमुल्लं // 1616 // 'तेलोक्कसव्वसारं' त्रैलोक्ये सर्वस्मिन्सारभूतां चतुर्गति-संसारदुःखनाशकरणीमाराधनां प्रपन्नोऽसो भगवान् मोक्षमप्रतिमौल्यं // 1919 // एवं जधाक्खादविधि संपत्ता सुद्धदसणचरित्ता / केइ खवंति खवया मोहावरणंतरायाणि // 1920 // 'एवं अधाक्खादविधि' एवं यथाख्यातविधि संप्राप्ताः शुद्धदर्शनचारित्राः केचित्क्षपका घातिकर्माणि क्षपयन्ति // 1920 // केवलकप्पं लोगं संपुण्णं दव्वपज्जयविधीहिं / ज्झायंता एयमणा जहंति आराहया देहं / / 1921 // 'केवलकप्पं' केवलज्ञानस्य परिच्छेद्यत्वेन योग्यं लोकं संपूर्ण द्रव्यपर्याय विकल्पः परिच्छिन्दन्तो जहति ते स्वदेहं // 1621 // सव्वुक्कसं जोगं गँजंता दंसणे चरित्ते य / कम्मरयविप्पमुक्का हवंति आराधया सिद्धा // 1922 / / 'सवक्कस्सं' सर्वोत्कृष्टं दर्शनचारित्रयोर्योगं प्रतिपद्यमानाः करजोम्यो विप्रयुक्ता आराधकाः सिद्धा भवन्ति // 1922 / / इयमुक्कस्सियमाराधणमणुपलित्तु केवली भविया / लोगग्गसिहरवासी हवंति सिद्धा धुयकिलेसा // 1923 // 'इय उक्कस्सिय' एवमुत्कृष्टामाराधनामनुपाल्य केवलिनो भूत्वा निरस्तक्लेशाः लोकाग्रशिखरवासिनः सिद्धा भवन्ति // 1923 // लेश्याविशुद्धिप्रकरणं समाप्तम्

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