Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ 107 ध्यानमाहात्म्यं लेश्याविशुद्धिप्रकरणं च तेओ पम्मा सुक्का लेस्साओ तिण्णि वि दु पसत्थाओ / पडिवज्जेइ य कमसो संवेगमणुत्तरं पत्तो // 1903 // 'तेओ पम्मा सुक्का' तेजः पद्मशुक्ललेश्याः प्रतिपद्यते परिपाट्या // 1603 // एदेसि लेस्साणं विसोधणं पडि उवक्कमो इणमो / सव्वेसि संगाणं विवज्जणं सव्वहा होइ // 1604 / / 'एदेसि लेस्साणं' एतासां शुभलेश्यानां शुद्धि प्रत्ययमुपक्रमः बाह्याभ्यन्तरसर्वपरिग्रहत्यागः // 1904 // लेस्सासोधी अज्झवसाणविसोधीए होइ जीवस्स / अज्झवसाणविसोधी मंदकसायस्स णादव्वा // 1605 // 'लेस्सासोधी' लेश्यानां शुद्धिः / 'अज्झवसाणविसोधीए होदि' परिणामविशुद्धया भवति / 'अझवसाणविसुद्धी' परिणामविशुद्धिश्च / 'मंदकसायस्स' मन्दकषायस्य भवतीति ज्ञातव्या // 1605 // कषायाणां मन्दता कथमित्यत्राह मंदा हुंति कसाया बाहिरसंगविजडस्स सव्वस्स / गिण्हइ कसायबहुलो चेव हु सव्वंपि गंथकलिं // 1906 / / 'मंदा ति कसाया' कषाया मन्दा भवन्ति, कृतबाह्यसंगपरित्यागस्य / कषायबहुल एवायं सर्वो जीवः सर्व ग्रन्थकलिं गृह्णाति // 1606 // जह इंधणेहिं अग्गी वड्डइ विज्झाइ इंधणेहिं विणा / गंथेहिं तह कसाओ वड्डइ विज्झाइं तेहिं विणा // 1907 // 'जह इंधणेहि अग्गी' इन्धनैर्यथाग्निर्वर्द्धते तैविना प्रशाम्यति / ग्रन्थस्तथा कषायो वर्द्धते, तैविना मन्दो भवति / / 1607 // जह पत्थरो पडतो खोभेइ दहे पसण्णमवि पंकं / खोभेइ पसण्णमवि कसायं जीवस्स तह गंथो // 1908 // 'जह पत्थरो पडतो' यथा पाषाणः पतन् हृदे प्रशान्तमपि पङ्क क्षोभयति, तथा जीवस्स कषायं ग्रन्थाः क्षोभयन्ति // 1908 / / अब्भंतरसोधीए गंथे णियमेण बाहिरे चयदि / अब्भंतरमइलो चेव बाहिरे गेण्हदि हु गंथे // 1906 // 'अभंतरसोधीए' अभ्यन्तरशुद्धया नियमेन बाह्यान्परिग्रहांस्त्यजति, अभ्यन्तरमलिन एव बाह्यान् गृह्णाति परिग्रहान् // 1606 // अब्भन्तरसोधीए बाहिरसोधी वि होदि णियमेण / अब्भंतरदोसेण हु कुणदि णरो बाहिरे दोसे // 1910 //

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