Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ विजयोदयाटीकासमलंकृत-भगवती-आराधनान्तर्गतं ध्यानमाहात्म्यं लेश्याविशुद्धिप्रकरणं च ध्यानमाहात्म्यम् सुचिरं वि संकिलिट्ठ विहरंतं झाणसंवरविहूणं / ज्झाणेण संवुडप्पा जिणदि अंतोमुहुत्तेण // 1885 // 'सुचिरमवि संकिलिलै विहरंत' पूर्वकोटिकालं देशोनं क्लेशसहितचारित्रोद्यतं 'झाणसंवरविहूणं' ध्यानाख्येन संवरेण विहीनं / 'जिणदि' जयति / कः ? 'आहोरत्तमेत्तण झाणेण संवुडप्पा' अहोरात्रमात्रेण ध्यानेन संवृतात्मा // 1885 // एवं कसायजुद्धमि हवदि खवयस्स आउधं झाणं / ज्झाणविहूणो खवओ रंगेव अणाउहो मल्लो // 1886 / / 'एवं कसायजुद्धमि' कषायसंप्रहारे ध्यानमायुधं क्षपकस्य भवति / ध्यानहीनः क्षपकः युद्धे निरायुध इव न प्रतिपक्षं प्रहन्तुमलं / कषायविनाशकारित्वं ध्यानस्यानया कथितम् // 1886 // रणभूमीए कवचं व कसायरणे तयं हवे कवचं / जुद्धे व णिरावरणो झाणेण विणा हवे खवओ // 1887 // 'रणभूमीए' युद्धभूमौ कवचवत्कषाययुद्धे ध्यानं कवचो भवति / एतेन कषायपीडारक्षा करोति ध्यानमित्याख्यातं / ध्यानाभावे दोषमाचष्टे-'जुद्ध व णिरावरणो' युद्धे निरायण इव भवति ध्यानेन विना क्षपकः // 1887 // ज्झाणं करेइ खवयस्सोवट्ठभं खु हीणचेटुस्स / थेरस्स जहा जंतस्स कुणदि जट्ठी उवट्ठभं // 1888 // "माणं करेदि' ध्यानं करोति क्षपकस्योपष्टम्भं हीनचेष्टस्य स्थविरस्य गच्छतो यथा करोति यष्टिरुपष्टम्भं // 18 // मल्लस्स हपाणं व कुणइ खवयस्स दढबलं झाणं / झाणविहीणो खवओ रंगे व अपोसिओ मल्लो // 1886 // 'मल्लस्स हपाणं व मल्लस्य स्नेहपानमिव क्षपकस्य ध्यानं करोति / ध्यानहीनः क्षपको रंगे अपोषितो मल्ल इव न प्रतिपक्षं जयति // 1886 // कइरं रदणेसु जहा गोसीसं चंदणं व गन्धेसु / वेरुलियं व मणीणं तह ज्झाणं होइ खव्यस्स // 1860 //

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