Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 163
________________ 106 चित्त-समाधि : जैन योग ___'वैरं रवणेसु जधा' यथा रत्नेषु वज्र गन्धद्रव्येषु गोशीर्षचंदनं / मणिषु वैडूर्यमिव क्षपकस्य ध्यानं सर्वेषु दर्शनचरित्रतपस्सु सारभूतं // 1860 // माणं किलेससावदरक्खा रक्खा व सावदभयम्मि / झाणं किलेसवसणे मित्तं मित्तेव वसणम्मि // 1861 // 'झाणं किलेससापदरक्खा' ध्यानं दुःखश्वापदानां रक्षा, श्वापदभये रक्षेव ध्यानं क्लेशव्यसने मित्रं, व्यसने मित्रमिव // 1861 // ज्झाणं कसायवादे गब्भघरं मारुदेव गब्भधरं / झाणं कसायउण्हे छाही छाहीव उण्हम्मि // 1862 // झाणं कसायडाहे होदि वरदहो दहोव डाहम्मि / झाणं कसायसीदे अग्गी अग्गीव सीदम्मि // 1863 / / झाणं कसायपरचक्कभए बलवाहणड्डओ राया / परचक्कभए बलवाहणड्ढओ होइ जह राया // 1864 // झाणं कसायरोगेसु होदि वेज्जो तिगिछदे कुसलो / रोगेसु जहा वेज्जो पुरिसस्स तिगिछओ कुसलो // 1865 // झाणं विसयछुहाए होइ य छुहाए अण्णं वा / माणं विसयतिसाए उदयं उदयं व तण्हाए // 1866 // स्पष्टार्थोत्तरगाथा // 1862 // // 1863 / / 1864 // // 1865 // // 1866 // ध्यानमाहात्म्यं समाप्तम् लेश्याविशुद्धिप्रकरणम् इय समभावमुवगदो तह ज्झायंतो पसत्तझाणं च / लेस्साहिं विसुज्झतो गुणसेढिं सो समारुहदि // 1600 // 'इय समभावमुवगदो' एवं समचित्ततां गतः प्रशस्तध्यानं प्रवर्तयेत्, लेश्याभिविशुद्धो गुणश्रेणीमारोहति // 1600 // जह बाहिरलेस्साओ किण्हादीओ हवंति पुरिसस्स / अभंतरलेस्साओ तह किण्हादी य पुरिसस्स // 1901 // किण्हा णीला काओ लेस्साओ तिण्णि अप्पसत्थाओ / पजहइ विरायकरणो . संवेगमणुत्तरं पत्तो // 1602 // 'जह बाहिरलेस्साओ' कृष्णनीलकापोताश्चेति तिस्रः अप्रशस्ताः प्रजहाति वैराग्यभावनावान् संसारभीरता परामुपागतः // 1601-1902 //

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