Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati
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________________ 108 चित्त-समाधि : जैन योग 'अन्नंतरसोधीए' अभ्यन्तरशुद्धया बाह्यशुद्धिनियमेन भवति / अभ्यन्तरदोषेणैव बाह्यान्कायगतान् दोषान् करोति // 1910 // . जध तंडुलस्स कोण्डयसोधी सतुसस्स तीरदि ण काहुँ / तह जीवस्स ण सक्का लिस्सासोधी ससंगस्स // 1911 / / 'जह तंदुलस्स' यथा तन्दुलस्य अभ्यन्तरमलशुद्धिः कर्तुं न शक्यते बाह्यतुषसहितस्य / तथा जीवस्य न शक्या लेश्याशुद्धिः कतु सपरिग्रहस्य // 1611 // इत उत्तरं लेश्याश्रयेणाराधनाविकल्पो निरूप्यते सुक्काए लेस्साए उक्कस्सं अंसयं परिणमित्ता / जो मरदि सो हु णियमा उक्कस्साराधओ होई // 1612 / / 'सुक्काए लेस्साए' शुक्ललेश्याया उत्कृष्टांशं परिणतो यो मृतिमुपैति स नियमादुत्कृष्टाराधको भवति // 1612 / खाइयदंसणचरणं खओवसमियं च णाणमिदि मग्गो / तं होइ खीणमोहो आराहित्ता य जो हु अरहंतो // 1913 // जे सेसा सुक्काए दु अंसया जे य पम्मलेस्साए / तल्लेस्सापरिणामो दु मज्झिमाराधणा मरणे // 1914 / / 'जे सेसा सुक्काए दु अंसया' उत्कृष्टांशादन्ये ये शुक्ललेश्याया अंशा ये चापि पद्मलेश्याया अंशा तत्र परिणामो मरणे मध्यमाराधना // 1613 // 1914 / / तेजाए लेस्साए ये अंसा तेसु जो परिणमित्ता / कालं करेइ तस्स हु जहणियाराधणा भणिदा // 1915 / / 'तेजाए लेस्साए' तेजोलेश्याया ये अंशास्तेषु परिणतो यदि कालं कुर्यात् तस्य जघन्याराधना भवति // 1615 // जो जाए परिणमित्ता लेस्साए संजुदो कुणइ कालं / तल्लेसो उववज्जइ तल्लेसे चेव सो सग्गे // 1616 // 'जो जाए' यो यया लेश्यया परिणतः कालं करोति, स तल्लेश्य एवोपजायते, तल्लेश्यासमन्विते स्वर्गे // 1616 // अध तेउपउमसुक्कं अदिच्छिदो णाणदंसणसमम्गो / आउक्खया दु सुद्धो गच्छदि सुद्धि चुयकिलेसो // 1917 / / 'अध तेउपउमसुक्क' अथ तेजःपद्मशुक्ललेश्या अतिक्रांतः अलेश्यतामुपगतो ज्ञानदर्शनसमग्र आयुषः क्षयात् सिद्धि गच्छति कर्मलेपापगमाद्विशुद्धो निरस्ताशेषक्लेशः // 1617 // एवं सुभाविदप्पा ज्झाणोवगओ पसत्थलेस्साओ / आराधणापडायं हरइ अविग्घेण सो खवओ // 1918 //

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