Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 142
________________ 85 ध्यानतपोनिरूपणम् एयग्गेण गिरोहो विणासो जम्मि तं ज्झाणमिदि एत्थ घेतव्वं; तेण ण पुव्वुत्तदोससंभवो त्ति / एत्थ गाहाओ तोयमिव णालियाए तत्तायसमायणोदरत्यं वा। परिहादि कमेण तहा जोगजलं उझाणजलणेण // जह सब्यसरीरगयं मंतेण विसं णिमए संके। तत्तो पुणोऽवणिज्जवि पहाणज्झरमंतजोएण // तह बावरतणुविसय जोगविसं ज्माणमंतबलजुत्तो। अणुभावम्मिणिरुभदि अवर्णदि तवो वि जिणवेज्जो // : .............. [ध्या० श. 75, 7.1,,72]. एवं तदियसुक्कझाणपरूवणा गदा। ......... / संपहि चउत्थसुक्कज्झाणपरूवणं कस्सामो / तं जहा—समुच्छिन्ना क्रिया योगो यस्मिन् तत्समुच्छिन्नक्रियम् / समुच्छिन्नक्रियं च अप्रतिपाति च समुच्छिन्नक्रियाप्रतिपाति ध्यानम् / श्रुतरहितत्वात् अवितर्कम् / जीवप्रदेशपरिस्पंदाभावादवीचारं अर्थव्यंजनयोगसंक्रांत्यभावाद्वा / एत्थ गाहा.-. . . ... ... . अविवक्कमवीचारं अणियट्टी अकिरियं च सेलेसि / / ज्झाणं णिरुद्धजोगं अपच्छिम उत्तमं सुक्कं // [भा० 1882] एदस्स अत्थो-जोगम्हि 'णिरुद्धम्हि आउसमाणि कम्माणि होंति अंतोमुहुत्तं। से काले सेलेसियं पडिवज्जदि समुच्छिण्णकिरियमणियट्टि सुक्कज्झाणं ज्झायदि / कधमैत्थ ज्झाणववएसो ? एयग्गेण चिंताए जीवस्स णिरोहो परिप्फंदाभावो ज्झाणं णाम / किं फलमेदं ज्झाणं ? . अघाइचउक्कविणासफलं / तदियसुक्कज्झाणं जोगणिरोहफलं / सेलेसियअद्धाए ज्झीणाए सव्वकम्मविप्पमुक्को एगसमएण सिद्धि गच्छदि / एवं ज्झाणं णाम तवोकम्मं गदं। ध्यानतपोनिरूपणं समाप्तम् /

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