Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 132
________________ श्रीवीरसेनाचार्यविरचित-धवलाटोकान्तर्गत ध्यानतपोनिरूपणम् उत्तमसंहननस्य एकाग्रचितानिरोधो ध्यानम् / एत्थ गाहा जं थिरमझवसाणं तं झाणं जं चलं तयं चित्तं / तं होइ भावणा वा अणुपेहा वा अहव चिता / / [ध्या० श० 2] तत्थ झाणे चत्तारि अहियारा होंति-ध्याता ध्येयं ध्यानं ध्यानफलमिति / तत्थ उत्तमसंघडणो ओघबलो ओघसूरो चोद्दसपुन्वहरो वा (दस-) णवपुव्वहरो वा, णाणेण विणा अणवगयणवपयत्थस्स झाणाणुववत्तीदो। जदि णवपयत्थविसयणाणेणेव ज्झाणस्स संभवो होइ तो चोद्दस-दस-णवपुव्वघरे मोत्तूण अण्णेसि पि ज्झाणं किण्ण संपज्जदे, चोद्दस-दस-णवपुव्वेहि विणा थोवेण वि गंथेण णवपयत्थावगमोवलंभादो ? ण, थोवेण गंथेण णिस्सेसमवगंतुं बीजबुद्धिमुणिणो मोत्तूण अण्णेसिमुवायाभावादो। जीवाजीव-पुण्णपाव-आसव-संवर-णिज्जरा-बंध-मोक्खेहि णवहि पयत्थेहि वदिरित्तमण्णं ण कि पि अत्थि, अणुवलंभादो। तम्हा ण थोवेण सुदेण एदे अवगंतुं सक्किजंते, विरोहादो। ण च दव्वसुदेण एत्थ अहियारो, पोग्गलवियारम्स जडस्स णाणोवलिंगभूदस्स सुदत्तविरोहादो। थोवदव्वसुदेण अवगयासेसणवपयत्थाणं सिवभूदिआदिबीजबुद्धीणं झाणाभावेण मोक्खाभावप्पसंगादो / थोवेण णाणेण जदि ज्झाणं होदि तो खवगसेडि-उवसमसेडीणमप्पाओग्गधम्मज्झाणं चेव होदि / चोद्दस-दस-णवपुव्वहरा पुण धम्म-सुक्कज्झाणाणं दोणं पि सामित्तमुवपमंति, अविरोहादो / तेण तेसिं चेव एस्थ णिद्देसो कदो। सम्माइट्ठी-ण च णवपयत्थविसय-रुइ-पच्चय-सद्धाहि विणा झाणं संभवदि, तप्पवुत्ति-कारणसंवेग-णिव्वेयाणं अण्णत्थ असंभवादो। चत्तासेसबझंतरंगगंथो-खेत्त-वत्थु-धण-धण्ण-दुवय-चउप्पय-जाण-सयणासण-सिस्सकुल-गण-संघेहि जणिदमिच्छत्त-कोह-माण-माया-लोह-हस्स-रइ-अरइ-सोग-भय-दुगुंछा-त्थीपुरिस-णqसयवेदादिअंतरंगगंथकंखापरिवेढियस्स सुहज्झाणाणुववत्तीदो / एत्थ गाहा ज्झाणिस्स लक्खणं से अज्जव-लहुअत्त-वुडवुवएसा / उवएसाणासुत्तं हिस्सग्गगवाओ रुचियो से // विवित्त-पासुअ-गिरि-गुहा-कंदर-पब्भार-सुसाण-आरामुज्जाणादिदेसत्थो - अण्णत्थ मणो-विक्खेवहेदुवत्थुदंसपेण सुहज्झाणविणासप्पसंगादो। जहासुहत्थो-असुहासणे ट्ठियस्स पीडियंगस्स ज्झाणवाघादसंभवादो / एत्थ गाहा

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