Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 134
________________ 77 ध्यानतपोनिरूपणम् णवकम्माणादाणं पोराणविणिज्जरा सुहावाणं / चारित्तभावणाए ज्झाणमयत्तेण य समेइ // सुविदियजयस्सहावो णिस्संगो णिब्भवो णिरासो य / वेरग्गभावियमणो ज्झाणम्मि सुणिच्चलो होइ / [ध्या० श० 30-34] विसएहितो दिढि णिरंभियूण ज्झये णिरुद्धचित्तो / कुदो ? विसएसु पसरंतदिहिस्स थिरत्ताणुववत्तीदो / एत्थ गाहाओ किचिद्दिट्ठिमुपावत्तइत्तु ज्झये णिरुद्धविट्ठीओ। अप्पाणम्मि सदि संधित्तुं संसारमोक्खळें // पच्चाहरित्तु विसएहि इंदियाई मणं च तेहितो। अप्पाणम्मि मणं तं जोगं पणिधाय धारेदि // __ [भगवती आराधना 1701-2] एवं झायंतस्स लक्खणं परविदं / संपहि ज्झेयपरूवणं कीरदे--को ज्झाइज्जइ ? जिणो वीयरायो केवलणाणेण अवगयतिकालगोयराणंतपज्जाओवचियछद्दव्वो णवकेवललद्धिप्पहु डिअणंतगुणेहि आरद्धदिव्वदेहधरो अजरो अमरो अजोणिसंभवो अदज्झो अछेज्जो अवत्तो णिरंजणो णिरामओ अणवज्जो सयलकिलेसुम्मुक्को तोसवज्जियो वि सेवयजणकप्परुक्खो, रोसवज्जिओ वि सगसमयपरम्मुहजीवाणं कयंतोवमो, सिद्धसज्झो जियजेयो संसार-सायरुत्तिण्णो सुहामियसायरणिबुड्डासेसकरचरणो णिच्चओ णिरायुहभावेण जाणावियपडिवक्खाभावो सव्वलक्खणसंपुण्णदप्पणसंकंतमाणुसच्छायागारो संतो वि सयलमाणुसपहावुत्तिण्णो अव्वओ अक्खओ। - द्रव्यतः क्षेत्रतश्चैव कालतो भावतस्तथा। सिद्धाष्टगुणसंयुक्ता गुणाःद्वादशधा स्मृताः॥ बारसगुणकलियो / एत्थ गाहा अकसायमवेदत्तं अकारयत्तं विदेहदा चेव / अचलत्तमलेपत्तं च होंति अच्चंतियाई से // सगसरूवे दिण्णचित्तजीवाणमसेसपावपणासओ जिणउवइट्टणवपयत्था वा ज्झयं होति / कथं ते णिग्गुणा कम्मक्खयकारिणो? ण, तेसिं रागादिणिरोहे णिमित्तकारणाणं तदविरोहादो। उत्तं च आलंबणेहि भरियो लोगो ज्झाइदुमणस्स खवगस्स / जं जं मणसा पेच्छइ तं तं आलंबणं होई //

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