Book Title: Jaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 130
________________ ध्यानशतकम् अवहाऽसंमोह-विवेग-विउसग्गा तस्स होंति लिंगाई।लिंगिज्जइ जेहिं मणी सुक्कज्झाणोवगयचित्तो॥१०॥ चालिज्जइ बीभेइ य धीरो न परीसहोवसग्गेहिं / सुहुमेसु न संमुज्झइ भावेसु न देवमायासु // 1 // देहविवित्तं पेच्छइ अप्पाणं तह य सव्वसंजोगे। देहोवहिवोसग्गं निस्संगो सव्वहा कुणइ // 12 // होति सुहासव-संवर-विणिज्जराऽमरसुहाइं विउलाइं। झाणवरस्स फलाइं सुहाणुबंधीणि धम्मस्स // 63 // ते य विसेसेण सुभासवादओऽणुत्तरामरसुहं च। दोण्हं सुक्काण फलं परिनिव्वाणं परिल्लाणं // 4 // आसवदारा संसारहेयवो जं ण धम्म-सुक्केसु / संसारकारणाइं तओ धुवं धम्म-सुक्काइं // 5 // संवर-विणिज्जराओ मोक्खस्स पहो तवो पहो तासि / झाणं च पहाणंगं तवस्स तो मोक्खहेऊयं // 66 // अंबर-लोह-महीणं कमसो जह मल-कलंक-पंकाणं / सोझावणयण-सोसे साहेति जलाऽणलाऽऽइच्चा / 97 // तह सोज्झाइसमत्था जीवंबर-लोह-मेइणिगयाणं / झाण-जलाऽणल-सूरा कम्म-मल-कलंक-पंकाणं // 6 // तापो सोसो भेओ जोगाणं झाणओ जहा निययं / तह ताव-सोस-भेया कम्मस्स वि झाइणो नियमा // 66 // जह रोगासयसमणं विसोसण-विरेयणोसहविहीहिं / तह कम्मामयसमणं झाणाणसणाइजोगेहिं // 10 // जह चिरसंचियमिघणमनलो पवणसहिओ दुयं दहइ / तह कम्झंधणममियं खणेण झाणाणलो डहइ // 101 // जह वा घणसंघाया खणेण पवणाहया विलिज्जति / झाण-पवणावहूया तह कम्म-घणा विलिज्जति // 102 // न कसायसमुत्थेहिं य बाहिज्जइ माणसेहिं दुक्खेहिं / ईसा-विसाय-सोगाइएहिं झाणोवगयचित्तो // 103 // सीयाऽऽयवाइएहिं य सारीरेहिं सुबहुप्पगारेहिं। झाणसुनिच्चलचित्तो न बाहिज्जइ निज्जरापेही // 104 //

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