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जैनविद्या
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प्रौषधि प्रकार-शारीरिक रोगों के विषय में कुन्दकुन्द ने लिखा है कि शरीर के एक-एक अंगुल में 96-96 रोग हो सकते हैं18 । इन बीमारियों के इलाज के लिए उन्होंने पाँच प्रकार की औषधियाँ भी बतलाई हैं19 जिनका वर्गीकरण निम्नप्रकार किया गया है
1. आमौषधि, 2. जल्लोषधि, 3. खेल्लौषधि, 4. विपुषौषधि एवं 5. सौंषधि । प्राचार्य ने एक स्थान पर शारीरिक संरचना का भी सुन्दर वर्णन किया है ।20
स्वस्थ रहने के साधन-प्राचार्य ने शारीरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए व्यायाम का वर्णन भी किया है । शरीर में तेल लगाकर धूलिवाले स्थान में दण्ड-बैठक करने एवं मुग्दर आदि शस्त्रों के द्वारा व्यायाम करने, साथ ही केला, तमाल, अशोक आदि वृक्षों के साथ अपनी शक्ति प्राजमाने पर भी प्रकाश डाला है21 ।
खाद्य एवं पेय पदार्थ- भोजन-वर्णन में प्राचार्य कुन्दकुन्द ने अनेक बार तिल का उल्लेख करने के अतिरिक्त अन्य किसी विशेष अनाज का उल्लेख नहीं किया है । इससे प्रतीत होता है कि उस समय भोजन में तिल अपना विशेष स्थान रखता था। ऐसा प्रतीत होता है कि तिल बहुत ही गुणकारी पदार्थ होने से उसके तथा उसके तेल से बने हुए मोदक आदि व्यंजनों का प्रयोग सार्वजनीन रहा होगा। पेय पदार्थों में उन्होंने दूध23 और इक्षुरस24 का उल्लेख किया है ।
उद्योग-धंधे-उद्योग-धन्धों में प्राचार्य स्वर्णशोधन25, रत्ननिर्माण26, विषौषधिनिर्माण27, प्राभूषण-निर्माण28, कृषि के यन्त्र-रहट बनाने29 तथा हसिया-निर्माण30, भवननिर्माण, मूर्ति-निर्माण32 आदि के उल्लेख किये हैं ।
मनोरंजन के साधन-मनोरंजन के साधनों में आचार्य ने गोष्ठी33 का उल्लेख किया है । इससे प्रतीत होता है कि उस समय विभिन्न प्रकार की गोष्ठियों का प्रायोजन उसी प्रकार किया जाता था जिस प्रकार आजकल कविसम्मेलन, संगीतसम्मेलन या साहित्यिक सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है ।
प्रथमानुयोग के मूलस्रोत-प्राचार्य कुन्दकुन्द ने यद्यपि कथा-साहित्य नहीं लिखा क्योंकि उनका समाज प्रबुद्ध था। कथा-कहानियों के माध्यम से सिद्धान्तों को समझाने की आवश्यकता तो केवल मन्द-बुद्धिवाले लोगों के लिए ही होती है । कुन्दकुन्द ने संसार को बढ़ानेवाली विकथाओं को चार वर्गों में विभाजित किया है
1. भक्तकथा--(भोजन के प्रति राग जागृत करनेवाली कथा) । 2. स्त्रीकथा-(स्त्रियों के प्रति आसक्ति जागृत करनेवाली कथा) । 3. राजकथा-(कपट-कूट एवं राजनीति का विश्लेषण करनेवाली कथा) । 4. चौरकथा-(चौर्य-कला का निरूपण करनेवाली कथा) ।