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आचार्य कुन्दकुन्द
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यथार्थ-असद्भूत-व्यवहारनय
-डॉ० रतनचन्द्र जैन
आचार्य कुन्दकुन्द ने समयसार में व्यवहारनय से जो निरूपण किया है उससे असद्भूत-व्यवहारनय के दो लक्षण सामने आते हैं
1. किसी वस्तु पर अन्य वस्तु के धर्म का आरोप
2. वस्तु के परद्रव्यसम्बन्ध तथा परद्रव्याश्रितभाव का निरूपण 1. अन्य वस्तु के धर्म का आरोप
. दो वस्तुओं में कोई निमित्तनैमित्तिकादि सम्बन्ध होने पर उनमें से किसी एक के वर्म का दूसरी पर आरोप करना उपचार कहलाता है। यह असद्भूत-व्यवहारनय का प्रसिद्ध लक्षण है। यह लक्षण आलापपद्धतिकार ने निम्नलिखित शब्दों में बतलाया है"अन्यत्र प्रसिद्धस्य धर्मस्यान्यत्र समारोपणमसद्भूतव्यवहारः । असद्भूतव्यवहार एव उपचारः ।" अर्थात् एक वस्तु पर दूसरी वस्तु के धर्म का आरोप करना असद्भूतव्यवहार है। असद्भूतव्यवहार ही उपचार है। उपचार के कुछ नियम हैं। उन्हें स्पष्ट करते हुए आलापपद्धतिकार कहते हैं- "मुख्याभावेसति प्रयोजने निमित्ते चोपचारः प्रवर्तते ।" अर्थात् उपचार उसी धर्म का किया जा सकता है जो वस्तु में स्वतः न हो तथा वह तभी किया जा सकता है जब उपचार का कोई प्राधार (निमित्त) एवं प्रयोजन हो । जैसे—'यह बालक सिंह है' इस वाक्य में बालक पर सिंह के धर्म (सिंहत्व) का आरोप किया गया है। सिंहत्व बालक में स्वतः नहीं है तथा बालक और सिंह में क्रूरता और शूरता का सादृश्य सम्बन्ध होने के कारण प्रारोप का आधार भी है तथा आरोप के द्वारा बालक में क्रौर्य-शौर्य