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आचार्य कुन्दकुन्द एवं बोधपाहुड
__-पं. अनूपचन्द न्यायतीर्थ
दिगम्बर जैन परम्परा में प्राचार्य कुन्दकुन्द का नाम सर्वोपरि पाता है । इन्हें दिगम्बर अाम्नाय में मूलसंघ के संस्थापक कहा जाता है । भगवान् महावीर के प्रमुख गणधर इन्द्रभूति गौतम के पश्चात् अन्य केवली श्रुतकेवली हुए किन्तु मंगलाचरण के रूप में महावीर एवं गौतम के साथ केवल कुन्दकुन्दाचार्य का नाम ही पाता है इससे इनकी महत्ता का पता चलता है।
मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी,
मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो जनधर्मोऽस्तु मंगलम् । उक्त मंगलाचरण का श्लोक कितना प्राचीन है यह तो अलग खोज का विषय है किंतु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि कुन्दकुन्दाचार्य की मान्यता काफी प्राचीन है। वे प्रथम शती के प्राचार्य थे तथा संवत् 4 में पाट बैठनेवाले प्राचार्य भद्रबाहु के शिष्य थे । प्राचार्य कुन्दकुन्द संवत् 49 में पट्टस्थ हुए और 51 वर्ष 10 माह तक इस पद पर प्रतिष्ठित रहे । प्राचार्य कुन्दकुन्द ने 11 वर्ष की आयु में दीक्षा ली तथा 33 वर्ष तक साधु पद पर रहने के पश्चात् प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए। उनकी आयु 95 वर्ष 10 मास 15 दिन की थी जैसाकि भट्टारक पट्टावलियों में दर्शाया गया है। इस तरह हम कह सकते हैं कि प्राचार्य कुन्दकुन्द का जन्म वि. सं. 5 में हुआ होगा। यह वर्ष प्राचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दि वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है, यह एक महत्त्वपूर्ण बात है।